Rajeshwar Singh

परिचय

व्यक्तित्व - डॉ. राजेश्वर सिंह

11 मार्च 1973 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ ज़िले में श्री रण बहादुर सिंह और श्रीमती तारा सिंह के घर पैदा हुए श्री राजेश्वर सिंह को कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन और ईमानदारी का पाठ उन्हें विरासत में मिला है। बल्यावास्था में ही उन्होंने अपने पिता श्री रण बहादुर सिंह जी से इसे आत्मसात किया था। भारतीय पुलिस सेवा (आई. पी. एस) में डी. आई. जी. के पद से सेवानिवृत हो चुके श्री रण बहादुर सिंह अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व और जीवनशैली से आजीवन बच्चों के मार्गदर्शक बने रहे और उन्हें व्यक्तित्व निर्माण, देशप्रेम, मानवता और पद की गरिमा के प्रति प्रेरित करते रहे। यही कारण है कि उनके परिवार में ज़्यादातर बच्चे प्रशासनिक सेवा विशेषकर पुलिस सेवा से जुड़े हुए हैं।

आरंभिक जीवन : छात्र जीवन से ही अत्यंत होनहार और खेल के प्रति रूचि रखने वाले राजेश्वर सिंह कला के प्रति भी उतने ही आकर्षित थे। अपनी कलात्मक गतिविधियों, भाषण प्रतियोगिता और वाद – विवाद प्रतियोगिता में भागीदारी लेकर हमेशा प्रशंसा के पात्र बने रहते। यही कारण रहा की छात्र जीवन में ही अपनी बहुआयामी प्रतिभा से शिक्षकों और छात्रों में आप हमेशा लोकप्रिय रहे। आई आई टी धनबाद से माइनिंग इंजीनियरिंग में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही उत्तर प्रदेश पुलिस में आपका चयन हो गया।

अपने सेवाकाल के शुरुआती दिनों में ही आपने सेवा में सामाजिक चेतना लाने की आवश्यकता महसूस की और इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए आपने प्रसिद्ध समाज विज्ञानियों के नियमों और सिद्धांतों को पुलिस सेवा से जोड़ने का प्रयास किया। पुलिस के कार्यों को और अधिक समाजोन्मुख बनाने के लिए आपने स्वयं सन 2003 में समाजशास्त्र (एम. ए.) में स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रेजुएशन) पूरा किया। मानवाधिकारों के प्रति समाज को जागरूक बनाने और पुलिस – जनता के बीच संवाद की साझेदारी को सार्थक बनाने की लिए आपने सन 2011 में मानवाधिकार – पुलिस एवं सामाजिक न्याय (जनपद इलाहाबाद पर आधारित एक समाज वैज्ञानिक अध्ययन) पर एक शोध पत्र लिखा. 

इस शोध पत्र में आपने जनता के मानवाधिकारों की रक्षा के विषय में विस्तार से चर्चा की है साथ ही पुलिसकर्मीयों के मानवाधिकारों की भी पड़ताल की है। अपने इस थीसिस में आपने पुलिस कर्मचारियों के अधिकारों, मानवाधिकारों की रक्षा और उनके काम करने की परिस्थितियों का सजीव वर्णन करते हुए एक नए प्रकार के संवाद की शुरुआत की है। इसके पश्चात् आपको डॉ0 ऑफ़ फिलोसोफी की उपाधि प्राप्त हुई।

जीवन दर्शन : शिक्षा के संबंध में आपकी राय हमेशा यही रही है की शिक्षा का संबंध उम्र से नहीं है, शिक्षा जीवन के किसी भी पड़ाव पर हासिल कर सकते हैं। अपने कार्य को प्रभावशाली बनाने और समयानुकूल स्वयं को सिद्ध रखने के लिए नए ज्ञान को प्राप्त करने से हिचकिचाना नहीं चाहिए। अपनी इसी सोच को मूर्त रूप देते हुए आपने 2018 में कानून की पढाई पूरी की और एल एल बी की उपाधि प्राप्त की।

पुलिस अधिकारी के रूप में : अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही आपका वास्ता उस क्षेत्र के वांछित अपराधियों से हो गया। लखनऊ और उसके आसपास के क्षेत्र में अपराधियों का बोल-बाला उन दिनों चरम पर था। आपने अपने जान की परवाह किए बिना 30 से अधिक अपराधियों को ढेर कर कुछ ही महीनों के अन्दर जिले में कानून व्यवस्था की बहाली की। आपके इन साहसिक कार्यों के बदौलत उत्तर प्रदेश और विशेषकर लखनऊ ज़िले में संगठित अपराध की कमर टूट गयी, न केवल अपराधियों में आपके नाम का खौफ भर आया बल्कि पुलिस की खाकी वर्दी के प्रति सभी का सम्मान बढा साथ ही लखनऊ और उसके आसपास के क्षेत्रों में शांति व्यवस्था स्थापित हुयी। आपके साहसिक कार्यों को देखते हुए आम लोगों में आप एनकाउंटर स्पेशलिस्ट जैसे नामों से लोकप्रिय हो गए। आपकी लोकप्रियता तब और बढ़ गयी जब आपने राजनीतिक शरण प्राप्त कुछ अपराधियों के गिरेबान पर हाथ डाला और उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। इस तरह आपने पहली बार तत्कालीन मुख्यमंत्री का संरक्षण प्राप्त अपराधी अतीक अहमद को जेल के हवाले करके काफी सर्खियाँ बटोरी। आपका यह साहसिक कदम सिर्फ समाचार में सुर्खियाँ बटोरने या लोकप्रियता हासिल करने के लिए नहीं थी बल्कि राजनीति और अपराध के तिलिस्म को तोड़ने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण प्रयास था। अपनी इन कार्यवाहियों की वजह से आप सियासी तौर पर तबादलों के भी शिकार हुए परन्तु आप हमेशा अपने नियमों और सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए अपने दायित्वों का पूरी तरह से निर्वहन करते हुए कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते रहे।

क्राइम ब्रांच की स्थापना : लखनऊ में डिप्टी एस पी के तौर पर नियुक्ति के बाद आपने लखनऊ क्षेत्र में पूरी तरह से अपराध पर अंकुश लगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कार्य किया और वह था लखनऊ के गोमती नगर में क्राइम ब्रांच की स्थापना। संसाधनों की कमी के बावज़ूद आपने इस क्राइम ब्रांच के माध्यम से महत्वपूर्ण मामलों की जाँच-पड़ताल कर अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने में कामयाबी हासिल की। 

फर्जी जमानतदारों पर अंकुश : सन 2005 के आस-पास इलाहबाद उच्च न्यायलय के परिसर में फर्जी जमानतदारों की बाढ़ सी आ गयी थी। ये जमानतदार शातिर अपराधियों की जमानत करवाने आते और बदले में कमीशन लेते थे। डॉ राजेश्वर सिंह ने बड़ी ही सूझ – बुझ से इन जमानतदारों के फर्जी धंधे का भंडाफोड़ किया। इनके पते, वाहनों का लाइसेंस, किसान बही आदि की जाँच अपनी निगरानी में करवाई और दोषी पाए गए। सभी जमानतदारों पर कानूनी कार्यवाही की। आपके इन उल्लेखनीय प्रयासों के बदौलत ही पहली बार पुलिस महकमे को इस बात का पता चल पाया की इलाहबाद उच्च न्यायालय में 70 प्रतिशत से ज्यादा जमानतदार फर्जी हैं और उनका संगठित अपराध कोर्ट परिसर में ही फल फुल रहा है। आपकी इस सफलता पर टिपण्णी करते हुए उच्च न्यायलय ने कहा – “राजेश्वर सिंह द्वारा की गयी जाँच में जो सफलता प्राप्त हुई है, उसे तमाम जाँच एजेंसियों को उदाहरण के तौर पर लेना चाहिए।” इतना ही नहीं जब फर्जी जमानतदारों से सम्बंधित मामलों की गहन पड़ताल के लिए इलाहबाद उच्च न्यायलय ने समिति का गठन किया तो आपको सम्मान प्रदान करते हुए इस समिति का हिस्सा बनाया गया।

ई.डी. में नियुक्ति : आपने अपने प्रशासनिक सेवाकाल में एक लम्बी छलांग तब लगाई जब 2007 में डेपुटेशन पर आपको प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) भेजा गया और 2014 में पूर्णतः निदेशालय में समायोजित कर लिया गया। इस दौरान आपने अद्भुत कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हुए अनेक वित्तीय हेराफेरी और घोटालों का पर्दाफाश किया। प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी और बाद में लखनऊ जोन के संयुक्त निदेशक के रूप में लगभग 15 वर्ष के सेवाकाल के दौरान आपके द्वारा की गयी कुछ चर्चित जांचों में 2-G स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला, औगास्ता वेस्टलैंड चौपर डील, एयरसेल मक्सिस घोटाला, आम्रपाली घोटाला, पोंजी स्कीम घोटाला, गोमती रिवर फ्रंट घोटाला आदि शामिल रहे है।
प्रवर्तन निदेशालय में कार्य के दौरान आपने पी.एम.एल.ए. कानून के तहत देश के घोटालेबाज नेताओं, नौकरशाहों, बाहुबलियों और माफियाओं द्वारा अवैध कमाई से अर्जित लगभग 4000 करोड़ रूपये से ज्यादा की चल-अचल संपत्तियां को जब्त किया और उन्हें जेल भेजा। साथ ही फेमा के तहत लगभग 20,000 करोड़ तक की चल-अचल संपत्ति से जुड़े मामलों में सम्बंधित व्यक्तियों को कारण बताओ नोटिस भेजा।
2-G स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले और एयरसेल मैक्सिस मामले में कार्यवाही कर कांग्रेस नेता पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्ती चिदंबरम को जेल भेजा। इसके अलावा ओम प्रकाश चौटाला, मधु कोड़ा, और जगन रेड्डी, मोहम्मद इकबाल, गायत्री प्रजापति, आज़म खान जैसे नेताओं को भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के आरोप में जेल का रास्ता दिखाया और उनकी करोड़ों की संपत्तियों को ज़ब्त किया।

राजेश्वर सिंह के काम के पारदर्शी तरीकों की चर्चा ने अब मीडिया में सुर्खियां बटोरनी शुरू कर दी। हर महकमे में आपकी चर्चा होने लगी और आपकी ईमानदारी की मिसाल दी जाने लगी। किसी भी प्रकार के घोटाले की जाँच में राजेश्वर सिंह का नाम जुड़ते ही अच्छे – अच्छों के पसीने छूटने लगे।

वो कहते हैं ना कि जीवन का ऐसा कोई सफर नहीं जहाँ बाधाएँ नहीं आती हो, ऐसी कोई मझधार नहीं जहाँ जीवन नैया डगमगाती नहीं हो, राजेश्वर सिंह की कोशिशों पर पानी फेरने के भी कई बार प्रयास हुए उनका तबादला और फिर मानसिक प्रताड़ना की भी कोशिश हुईं। उनके खिलाफ 100 से अधिक बेबुनियाद शिकायतें दर्ज की गयी।

सुप्रीम कोर्ट के दखल देने की मुख्य वजह थी तत्कालीन केंद्र सरकार और वित्त मंत्रालय द्वारा आपका बार-बार प्रताड़ित किया जाना और आपके काम में दखल देना। सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए आपको राजनेताओं और उनकी साजिशों से राहत दिलाई। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सभी पहलुओं की बारीकी से जाँच परख के बाद अपना आदेश जारी करते हुए कहा – “प्रथम दृष्टया हम इस बात से संतुष्ट हैं की 2 जी घोटाले में की जा रही कार्यवाही में हस्तक्षेप करने का प्रयास किया गया है. निश्चित रूप से जाँच के साथ आगे बढ़ने से रोकने का उनपर दवाब डाला गया है।” माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न मामलों पर दृष्टिपात करते हुए आगे कहा – “इस तरह से जाँच में बाधा डालना यह इंगित करता है कि श्री राजेश्वर सिंह को जाँच पड़ताल में निडरता के साथ आगे बढ़ने से रोकने का प्रयास किया जा रहा है। यह पूरा प्रकरण प्रथम दृष्टया इस न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश के उल्लंघन के बराबर है।”

माननीय सर्वोच्च न्यायालय की एक बेंच ने आपपर लगाये गए सभी प्रकार के आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा की एक कर्मनिष्ठ एवं इमानदार अधिकारी को संगठित साजिश के तहत परेशान किया जा रहा है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस एच एल दत्तु ने एक आदेश में कहा – “यह कोर्ट श्री राजेश्वर सिंह की परमानेंट नियुक्ति के लिए आदेश जारी करेगी. इस कोर्ट ने श्री सिंह पर विश्वास जताया है और चल रहे घोटाला मामलों में कार्यवाही करने का उन्हें दारोमदार दिया है। क्या आप (भारत सरकार) उम्मीद करते हैं की वे कोर्ट केसेस लड़ते हुए कार्यवाही करें”?

इसके ठीक बाद यानि 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद डॉ. राजेश्वर सिंह को ई. डी. में समायोजित कर लिया गया।