माँ बगलामुखी जयंती पर विशेष: सभी कष्टों को दूर करने और शत्रुओं का नाश करने वाली हैं माँ बगलामुखी
प्रत्येक वर्ष वैशाख मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को माँ बगलामुखी जयंती मनाई जाती है। शक्ति के उपासक ब्रह्मास्त्र विद्यादात्री बगलामुखी देवी की उपासना ब्रह्मास्त्र की सिद्धि शत्रुनाश, वाकसिद्ध, और वाद विवाद में विजय के लिये करते हैं। देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, बगला, वल्गामुखी, वगलामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि के नामों से भी जाना जाता है। इनमें सारे ब्रह्माण्ड का समावेश है। जगजननी पीताम्बरा बगलामुखी के प्रथमोपासक भगवान विष्णु, भगवान शिव स्वयं ब्रह्मा जी, सुरेंद्र नारद ऋषि, पवन पुत्र हनुमान, भगवान परशुराम सनकादि मुनि ब्रह्मास्त्र विद्या बगलामुखी देवी के परमोपसक हैं। माँ के अलौकिक सौन्दर्य और स्तम्भन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम दिया गया है। देवी बगलामुखी को वीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी है। माता बगलामुखी सभी कष्टों को दूर करने और शत्रुओं से रक्षा करने वाली हैं, सिद्धपीठ माँ पीताम्बरा के दिव्य स्वरूपी दर्शन मात्र से ही नई ऊर्जा प्राप्त हो जाती है तथा मनुष्य जीवन के सारे संताप दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। माँ का यह स्वरूप अद्भुत और अलौकिक है।
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीम्। हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम् ।।
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै। व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत् ।।
अर्थात् सुवर्ण के आसन पर स्थित, तीन नेत्रों वाली, पीताम्बर से उल्लसित, सुवर्ण की भाँति कान्ति-मय अंगोंवाली, जिनके मणि-मय मुकुट में चन्द्र चमक रहा है, कण्ठ में सुन्दर चम्पापुष्प की माला शोभित है। जो अपने चार हाथों में गदा, पाश , वज्र और शत्रु की जीभ धारण किए हैं। दिव्य आभूषणों से जिनका पूरा शरीर भरा हुआ है, ऐसी तीनों लोकों का स्तम्भन करने वाली श्री बगलामुखी माता का मैं स्मरण करता हूँ।
सर्वरूपमयी देवी सर्वभ् देवीमयम् जगत। अतोऽहम् विश्वरूपा त्वाम् नमामि परमेश्वरी।।
अर्थात यह सारा संसार शक्ति रूप ही है, इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। दसों दिशाओं को समर्पित माँ पार्वती के दस महाविद्या स्वरुप है, जिनमें माँ काली, छिन्नमस्ता, धूमावती और माँ बगलामुखी उग्र स्वरूप है। त्रिपुरसुन्दरी, भुवनेश्वरी, मातंगी और महालक्ष्मी (कमला) सौम्य स्वरुप हैं। तारा तथा भैरवी रूप को माँ पार्वती का सौम्य – उग्र स्वरुप माना जाता है।
माँ बगलामुखी का प्रकट्य हल्दी रंग के जल में होने के कारण इन्हें माँ पीताम्बरा भी कहा जाता है। जो स्तम्भन की देवी है, सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी तरंगे व्याप्त है वो माँ बगलामुखी की वजह से है। महाभारत के युद्ध के पूर्व कृष्ण और अर्जुन ने माता बगलामुखी की विशेष आराधना की थी। युद्ध में विजय प्राप्ति और शत्रुओं के नाश के लिए माँ बगलामुखी की साधना का विशेष महत्व है। दस महाशक्तियों में आठवीं प्रमुख महाशक्ति माँ बगलामुखी भक्तों के भाग्य को परिवर्तित करने की शक्ति से संपन्न हैं। माँ बगलामुखी के स्त्रोत श्रवण करने मात्र से भी साधक को यश. कीर्ति, ऐश्वर्य, बुद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
माँ बगलामुखी की प्रमुख पीठ के रूप में मध्यप्रदेश के दतिया जिले में माँ पीताम्बरा मंदिर का स्थित है, माँ पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में ही माता धूमावती का मंदिर भी स्थित है। माँ पीताम्बरा हाथों में गदा, पाश, वज्र और शत्रु जिह्वा धारण करती हैं। माता पीताम्बरा शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी हैं, और राजसत्ता प्राप्ति में माँ पीताम्बरा देवी की आराधना का विशेष महत्व है। माँ बगलामुखी के अन्य सिद्ध पीठ, वनखंडी मंदिर वनखंडी कांगड़ा हिमाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले स्थित महाभारत कालीन कोटला पीठ जहां अज्ञातवास के समय पांडवों के माँ बगलामुखी की आराधना की थी, माँ बमलेश्वरी मंदिर राजनांदगांव छतीसगढ़, त्रिशक्ति मंदिर नलखेड़ा मध्यप्रदेश, मध्यप्रदेश के खरगोन स्थित नवग्रह मंदिर में पूजा करने से नवग्रह सम्बंधित दोष दूर हो जाते हैं। मुंबई में बगलामुखी माता ‘तुजला भवानी’ के रूप में विराजमान है जिनको समर्पित मुंबई का मुम्बा देवी मंदिर है।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं ब्रह्मविद्या स्वरूपिणी स्वाहा: और ‘ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम वाचं मुखम पदम् स्तम्भय। जिव्हां कीलायं बुद्धिम विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।। माँ बगलामुखी को प्रसन्न करने के प्रमुख मंत्र हैं।
– डॉ राजेश्वर सिंह
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