Rajeshwar Singh

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

महर्षि बाल्मीकि कृति रामायण का प्रसंग है, लंका पर विजय प्राप्त करने के उपरान्त उसकी भव्यता से मुग्ध होकर लक्ष्मण ने लंका पर शासन करने का सुझाव दिया तब प्रभु श्री राम अनुज लक्ष्मण से कहा यद्यपि यह लंका सोने की बनी है फिर भी इसमें मेरी लेशमात्र रूचि नहीं है क्योकि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं।

अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥

यह प्रसंग आज भी हमारे लिए सर्वाधिक प्रेरणादायी है, क्योकि जननी (अर्थात जन्मदेने वाली माँ) और जन्मभूमि के प्रति सर्वोच्च सम्मान हमारा प्रथम नैतिक दायित्व है।

आदर्श, मर्यादा और त्याग के प्रतिमान प्रभु श्रीरामचन्द्र जी का सम्पूर्ण जीवन हमारे लिए अगिनित शिक्षाओं और आदर्शों से परिपूर्ण है, जिनमें से प्रमुख शिक्षाओं को जीवन में उतार कर ही आदर्श व्यक्तित्व, आदर्श समाज और राष्ट्र का निर्माण संभव है।

प्रभु राम के जीवन की मूल शिक्षा यह है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, वह हमेशा सत्य से पराजित होगी। सच की हमेशा जीत होती है, झूठ कितना भी शातिर क्यों न हो। बुराई पर अच्छाई की जीत एक सार्वभौमिक सत्य है। सत्य के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति के पास एक महान दिल और उच्च नैतिक मूल्य होते हैं। भगवान् राम के जीवन में अनेक कठिनियाँ आई पर उन्होंने सत्य का मार्ग कभी नहीं छोड़ा, वो हमेशा सत्य के मार्ग पर चले जबकि उस समय एक महाज्ञानी, भगवान् शिव के भक्त और महान योद्धा रावण ने असत्य और अहंकार का सहारा लिया था, जिस कारण उसका सर्वस्त्र नास हुआ। भगवान् राम ने उसको और उसके अहंकार को मिटा कर सत्य की स्थापना की।

अत्यंत बलशाली बालि को भी अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा क्योकि उसने असत्य का मार्ग चुना था। महर्षि वाल्मीकि का कथन है कि जिन्हें धर्म का सच्चा ज्ञान है उनके अनुसार सत्य ही सबसे बड़ा धर्म है। मनुष्य को कितना भी कष्ट सहना पड़े अंततः सत्य की ही जीत होती है।

आज हम छोटी छोटी बातों पर अपना धीरज खो देते हैं और सत्य के मार्ग से विमुख हो जाते हैं, जबकि भगवन राम का जीवन चरित हमारे लिए उदाहरण है की सत्य के मार्ग पर चलते हुए हमें कभी घबराना नहीं चाहिए।

अपनी बात पर अडिग रहने वाले और किसी भी परिस्थिति में दिए गए वचनों का पालन करने वाले लोग ही हमेशा याद किये जाते हैं, हमें रामायण के विभीन्न चरित्रों से यही शिक्षा मिलती है।

रघुकुल रीति सदा चाली आई, प्राण जाय पर वचन न जाई।

राजा दशरथ ने अपने कुल की इस रीति का बखूबी निर्वहन किया, अपने प्राण त्याग दिए पर पत्नी कैकेई को दिए वचनों से कभी पीछे नहीं हटे।

भगवान राम जब वन जाने लगे तो उनकी माताओं ने पुत्र वियोग में अस्वस्थ्य हो गए पिता दशरथ की स्थिति दिखाकर उन्हें रोकना चाह तो उन्होंने यह देखकर कहा ‘दुर्लभं हि सदा सुखं’ अर्थात मनुष्य के लिए सदा सुखी रह पान संभव नहीं है, उन्होंने एक आदर्श प्रस्तुत करते हुए ‘पिता से अधिक पिता के वचनों की मर्यादा रखी।‘

अगर हम आपको वनों में जाकर जीवन यापन करना पड़ जाए तो आज की स्थिति में यह हमारे लिए बिलकुल आसान नहीं होगा, सीता जी तो राजकुमारी थी, राज जनक के घर पूरे वैभव में पली बढ़ी, पर जब पति को वनवास हुआ तो उन्होंने पतिव्रता धर्म निभाते हुए वन जाना पसंद किया, यह उनका संबंधों के प्रति वचन बद्धता का परिचायक है। दोबारा जब प्रभु श्रीराम जी ने सीता का त्याग किया तो वे गर्भवती थी परन्तु एक आदर्श रानी होने की शिक्षा दी,अपनी प्रजा की इच्छाओं व अपने पति पर राजधर्म के पालन के लिए उन्होंने पुनः वनगमन स्वीकार किया।

हनुमान जी अत्यंत बलशाली और बुद्धिमान होने के साथ स्वामिभक्ति के लिए हम सभी के लिए आदर्श हैं, उन्होंने हमेशा प्रभु श्रीराम को कठिनाइयों से बचाया, और अपनी स्वामी भक्ति का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया यह प्रभि श्रीराम के प्रति हनुमान जी का समर्पण था, भगवान राम के अनुज लक्ष्मण हमेश उनके साथ रहे, माता कैकेई ने जब राम के लिए 14 वर्ष का वनवास माँगा तब लक्ष्मण जी भी उनके साथ गए और अपने वचनबद्धता के संकल्प को कभी पीछे नहीं छोड़ा। भगवान् राम के वन जाने पश्चात भरत ने उनकी चरण पादुकाएं राज सिंहासन पर रख स्वयं कुतिया में रहते रहते थे, उन्होंने एक आदर्श भाई के चरित्र और वचन बद्धता को दर्शाया, आज के समय में हमें इस प्रकार वचनबद्धता की शिक्षा ग्रहण करनी है, तभी एक स्वस्थ्य समाज का निर्माण संभव हो सकेगा।

राजा दशरथ की तीन पत्नियां और चार बेटे थे, सभी के बीच परस्पर लगाव था परन्तु उनके जीवन में जब उन्हें कठिन समय से गुजरना पड़ा, तब भी उनका दिल एकजुट हो गया जब वे शारीरिक रूप से अलग थे। हमें हमेशा अपने परिवार के साथ खड़ा होना चाहिए क्योंकि जब एक साथ एक परिवार किसी भी कठिनाई पर जीत हासिल कर सकता है। एकजुटता का फल तब भी जहाज को आगे बढ़ने की शक्ति देता है जब ज्वार आकाश से भी ऊंचा लगने लगता है।

राजा दशरथ ने सदैव अपने परिवार को महत्व दिया, रानी कौशिल्या ने हमेशा उन्हें उच्च आदर्शों के लिए प्रेरित किया तो रानी कैकेई युद्ध और आखेट के लिए भी उनके साथ जाती थी, कई बार उन्होंने राजा दशरथ को विपरीत परिस्थितियों में सहारा दिया, उनके प्राणों की रक्षा की, संबासुर नामक राक्षस ने जब रजा दशरथ को घायल कर दिया तो कैकेई ने उनके प्राण बचाए तभी उन्होंने कैकेई को 2 वरदान भी दिए थे। भगवान् राम ने भी परिवार के आदर्शों की रक्षा के लिए वन जाने के निर्मन्य को सहर्ष चुना, जबकि भरत ने राजपाठ पाने के बाद भी राज गद्दी नहीं स्वीकारी, लक्ष्मण जी हमेशा श्रीराम के साथ रहे, उनके साथ रावण से युद्ध किया और अत्यंत बलशाली मेघनाद का वध किया, यह संभव हो सका संबंधों पर अटूट विश्वास के कारण , जिसकी आज के परिपेक्ष्य में सर्वाधिक आवश्यकता है।

एक आभासी स्थिति जिसका कोई अस्तित्व नहीं होता परन्तु वह हमारी आँखों से दिखता है और मष्तिष्क उस पर विचार करने लगता है उसे मृगतृष्णा कहते हैं। आज के समय में भी देखा जाता है, हम जीवन में उन परिस्थितियों की कल्पना कर लेते हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता है। राजा दशरथ ने एक आदर्श जीवन जिया 3 रानियाँ थी, 4 बेटे थे। बड़े बेटे राम का राज्याभिषेक होना था, पूरे राज्य में खुशियाँ मनाई जा रही थी, उसी समय दासी मंथरा के माध्यम से कैकेई के मन में एक काल्पनिक बात बैठा दी गयी की राम के राजा बनने से उनका महत्व कम हो जायेगा, भारत को रजा बनाना चाहिए, और इसी कपोलकल्पित बात ने अयोध्या राजभवन में ऐसी स्थिति पैदा की जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी, दूसरा प्रसंग है वन में सीता माता प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी के साथ बैठी थी, उसी समय एक सोने का मृग सामने से निकला सीता जी को उसे प्राप्त करने की इच्छा जागृत हो गयी।

यद्यपि सीता जी जानती थी की सोने का मृग नहीं होता है, लेकिन एक आभासी बात को सत्य मान लिया, जिसके परिणामतः सीताहरण हुआ, उनके तमाम कथ्तों का सामना करना पड़ा। आज भी अधिकाँश लोग इसी मृग मारीचिका रुपी आभासी स्थिति के कारण स्वयं और अपने स्वजनों को भी कष्ट में डालते हैं, इन परिस्थितियों में विवेक का पूर्ण उपयोग करना चाहिए यही मानव धर्म है। आज समाज में बढती अनैतिकता, आपसी अविश्वास, संबंधों में कटुता जैसी समस्याओं का समाधान मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम चन्द्र जी की चरित्र को अपने जीवन में उतार कर ही संभव है।

राजेश्वर सिंह

We need judiciary for people and by people

It is time we re-evaluated the collegium system and addressed its flaws to serve the best interest of the nation

As the cornerstone of any democratic society, the ‘will of the people’ forms the foundation of the Constitution of India. Among its various facets, the selection of judges for the higher judiciary, which serves as the repository of citizens’ rights, is of paramount importance for maintaining public faith in the judiciary. The current system of judicial appointments in India, the collegium system, has been the subject of much debate and controversy. It is imperative that we evaluate whether this system truly reflects the will of the people and serves the best interests of the nation.

Judicial appointments: History and evolution

When the Constitutional provisions relating to the appointment of judges to the Supreme Court (SC) and the High Courts were being debated, it was proposed that the appointment of judges should be made by the President in consultation with the Chief Justice of India (CJI). This was to strike a balance between the independence of the judiciary and ensuring that appointments are made in a fair and impartial manner. Accordingly, Articles 124 and 217 were framed to state that the President shall appoint the judges in the SC or High Courts in ‘consultation’ with the CJI, Governor of the relevant state (for appointments to High Courts) and other judges as the President may deem fit.

Despite the clarity with which the Constitution spells out the primacy of the executive as regards to the judicial appointments, the same has been the subject of multiple judicial decisions. In the First-Judges case (1981)’ the SC ruled that the government was not bound by the views of the CJI in the appointment of judges. This was overruled in the ‘Second-Judges case (1993)’ wherein the word ‘consultation’ in Articles 124 and 217was interpreted to mean that the government was ‘bound’ by the advice of the CJI, who in turn would consult two senior-most judges of the SC.

This paved the way for the current collegium system of appointment, which was further solidified in 1998. Despite subsequent challenges to the system, the SC has consistently upheld it, reaffirming its status as the established method for appointing judges. However, the question remains whether the Constitution intended for such a system in the first place.

Justice Dinakaran’s saga

It claims independence and impartiality. The collegium system is beleaguered by serious flaws that have had a detrimental impact on the functioning of the judiciary. Justice Ruma Pal noted “consensus within the collegium is sometimes resolved through a trade-off, resulting in dubious appointments with disastrous consequences for litigants and credibility of the judicial system. Besides, institutional independence has also been compromised by growing sycophancy and lobbying within the system.”

The case of Justice PD Dinakaran, who was recommended by the collegium for appointment to the SC in 2009, is a case in point. Despite facing serious allegations of illegal land acquisition and owning assets disproportionate to known sources of income, the collegium seemed hesitant in taking any action. Instead, in an unprecedented move, the collegium requested Justice Dinakaran to go on leave, which he refused, stating that the collegium did not have the power to do so. Subsequently, the collegium had him transferred to the Sikkim High Court as Chief Justice without investigating the allegations against him.

This raises several questions about the integrity and functioning of the collegium system. It begs to ask, why a judge who has an alleged case of corruption against him would be transferred to any High Court without investigation. Surely, Sikkim did not deserve to have a judge with such serious allegations against him.

Striking down NJAC Act, 2014

It is high time that we re-evaluated the collegium system and addressed its flaws to ensure that it truly reflects the will of the people and serves the best interest of the nation. The judgment of the SC striking down the National Judicial Appointments Commission (NJAC) Act, 2014, was a missed opportunity for meaningful reform of the appointment process. The Act included the right checks and balances that could have contributed to a more transparent and accountable appointment process.

A key aspect of the Act was the composition of the Commission, which was to consist of the CJI, two senior-most judges of the SC, the Union Minister of Law and Justice, and two ‘eminent persons’ who would have been appointed by a committee consisting of the CJI, Prime Minister and the Leader of Opposition in the Lok Sabha. This diverse composition could have ensured a balanced yet representative selection process.

Furthermore, the NJAC was required to invite applications and hold interviews for judicial appointments, and to make the proceedings of the interviews and the reasons for selection public. This transparency would allow the executive to participate in the selection process, but ensure that appointments were on merit and not lopsided. The SC, however, disregarding the merits of the enactment suggested that the executive is not to be trusted and that it would do all things possible to appoint the people they wanted to.

Accordingly, the Law Minister being a member of the NJAC, and that the participation of the Prime Minister and the Leader of Opposition along with the CJI in appointing the two ‘eminent persons’ would mean political involvement and would vitiate the whole process. Thus, the enactment was abolished.

Democratisation of the judiciary

It is important to acknowledge that the current system, despite being upheld by the Supreme Court, is not perfect and there is room for improvement. It is within legal bounds to engage in discussions about the system and consider ways to improve it.

The greatest irony of our country is that the people have no say in the selection of judges, which is not fair as the judges are appointed to serve the people. A completely unaccountable judiciary does not align with the concept of democracy. The Judicial Standards and Accountability Bill, 2010, and the NJAC Act, 2014, were proposed to ensure that elected representatives of the people have a say in the appointment of judges, this is the only way to ensure that the judiciary is representative of the diverse population of India and the views and concerns of the citizens are taken into consideration.

It is imperative that the judiciary remains open to interventions and suggestions for reform, as transparency and inclusivity are essential for the functioning of a fair and just judiciary. The judiciary must adopt the approach of, in the SC’s own words, “sunlight is the best disinfectant” in order to ensure that it is truly representative of the society it serves and is not beholden to any particular group or individual.

Rajeshwar Singh

अपेक्षा से अधिक परिणाम देने की दिशा में अग्रसर “सरोजनीनगर स्पोर्ट्स लीग”

स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है और तन को स्वस्थ बनाने में खेलों की सर्वाधिक भूमिका है। भारत समेत पूरी दुनिया पिछले 2-3 साल से कोरोना महामारी की दौर से गुजर रही थी ऐसे में लोगों की जीवनचर्या में बड़ा बदलाव देखने को मिला। वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति को बढ़ावा मिला, बच्चों की शिक्षा भी ब्लैकबोर्ड से हट कर ऑनलाइन मोड़ पर आ गयी, बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी में भी तेजी से गिरावट देखने को मिली।

वैश्विक सर्वेक्षण एजेंसियों की रिपोर्टों के अनुसार वर्ष 2019 तक भारत के लोग औसत 3.9 घंटे मोबाइल पर बिताते थे वहीं अब यह अनुपात बढ़कर 4.9 घंटे प्रतिदिन तक पहुँच गया है, यह औसत ब्राजील और इंडोनेशियाई लोगों के बाद विश्व में सर्वाधिक है, मैंने कुछ समाचार पत्रों में बच्चों में लगातार बढ़ रहे मोटापे,मधुमेह और ब्लडप्रेशर की बढती समस्याओं के बारे में पढ़ा। आज देश के युवाओं में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है, 20 प्रतिशत युवाओं में डायबिटीज की समस्या है। विश्व के हर 10 बच्चों में से 1 बच्चा मोटापे या डायबिटीज से ग्रसित है। बच्चे देश का भविष्य हैं, हमें उनके उत्तम स्वास्थ्य के लिए इन आंकड़ों को बदलना है, इसके लिए सबसे बेहतर और सरल माध्यम खेल है।

सरोजनीनगर के बच्चो को फिजिकली फिट और मेंटली अलर्ट बनाने के लिए मैंने सरोजनी नगर स्पोर्ट्स लीग के आयोजन का निर्णय लिया, जिसके लिए मुझे क्षेत्रवासियों से न केवल सराहना मिली बल्कि लोगों का सहयोग भी मिला। आरंभिक प्रतिस्पर्धा के लिए ही क्षेत्र के 16 स्कूलों की टीमें तैयार हो गयी, सुप्रसिद्ध शिक्षाविद श्री एसकेडी सिंह जी ने न केवल लीग के आयोजन के लिए शुभकामनाएं दीं बल्कि वृन्दावन योजना स्थित SKD अकेडमी में आयोजन की तैयारियां भी करवाई।

सभी के सहयोग से 4 दिसम्बर 2022 दिन रविवार को अंडर-19 गर्ल्स बास्केटबाल प्रतिस्पर्धा के आयोजन के साथ सरोजनीनगर स्पोर्ट्स लीग का शुभारम्भ हुआ, लीग के शुभारम्भ समारोह में हाइकोर्ट के जज जस्टिस अताउर्रहमान मसूदी जी, मेरे बड़े भाई चीफ़ इनकम टैक्स कमिश्नर श्री रामेश्वर सिंह जी, श्री एसकेडी सिंह जी और डॉ.आशीष सिंह जी की गरिमामयी उपस्थिथि रही।

बास्केटबॉल टूर्नामेंट की सभी प्रतियोगी छात्राओं को उपहार देकर प्रोत्साहित एवं सम्मानित किया तथा प्रतियोगिता में सर्वाधिक 5 बास्केट करने वाली भोनवाल कान्वेंट स्कूल की छात्रा सानिया अहमद एवं 4 बास्केट करने वाली DPS शहीद पथ की छात्रा साक्षी वर्मा को ढ़ेरों शुभकामनाएं दीं व नगद प्रोत्साहन राशि प्रदान कर सम्मानित किया।

सरोजनीनगर स्पोर्ट्स लीग में विजेता टीम को 50 हजार की नगद प्रोत्साहन राशि और उपविजेता टीम को 25 हजार की नगद प्रोत्साहन राशि दिए जाने का प्रावधान किया गया है। ऐसे खेल आयोजनों के माध्यम से मेरा प्रयास बच्चों को आउटडोर गेम्स के लिए प्रेरित करना ताकि पढ़ाई के साथ-साथ उनकी शारीरिक गतिविधियाँ बढ़ें और स्फूर्ति का संचार हो।

वर्तमान समय में खेलों के प्रति लोगों का दृष्टिकोण बदला है, खेलों में कैरियर बनाने की अपरिमित संभावनाएं हैं। केंद्र एवं राज्य सरकार खेलों के प्रोत्साहन के लिए भी निरंतर ध्यान दे रही है, मेरा प्रयास है कि सरोजनी नगर के बच्चों में छिपी खेल प्रतिभा को पहचान मिले, उन बच्चों को अच्छा प्रशिक्षण दिलाया जाए और वो आगे चलकर देश के अच्छे खिलाडी बनें राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय स्तर पर सरोजनी नगर और उत्तर प्रदेश का नाम रोशन करें।

मेरा मानना है कि खिलाडी समाज और देश के सबसे अच्छे नागरिक होते हैं, क्योकि उनमें समर्पण, निष्ठा और त्वरित निर्णय शक्ति के विशेष गुण होते हैं। सरोजनीनगर के बच्चों को खेलों के लिए उचित प्लेटफोर्म और अवसर प्रदान करने के लिए सरोजनीनगर स्पोर्ट्स लीग का आयोजन निरंतर होता रहेगा। आगामी समय में क्रिकेट, वॉलीबॉल, फुटबॉल आदि प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की जाएगी, सरोजनी नगर के और अधिक विद्यालाओं की सहभागिता भी बढ़ेगी। सरोजनीनगर के हर बच्चे को मानसिक तनाव से मुक्ति, शारीरिक स्फूर्ति और खेलों में भविष्य बनाने के अधिक से अधिक अवसर प्राप्त होंगे, मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैंने जिन उद्देशों को लेकर सरोजनीनगर स्पोर्ट्स लीग का आयोजन किया,परिणाम उस से कहीं अधिक बड़ा होगा।
धन्यवाद।

डॉ.राजेश्वर सिंह

हर बच्चे के चेहरे पर मुस्कुराहट देखना ही मेरा लक्ष्य है।

बच्चों के लिए प्राइमरी शिक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यही वह समय है जब उनके उज्जवल भविष्य का मजबूत आधार बनता है, अगर शुरुआत अच्छी होती है तो उनका पूरा जीवन बेहतर बनता है।

सरोजनीनगर देश की सबसे आदर्श विधानसभा बनने की ओर निरंतर अग्रसर है और संकल्पों को सिद्धि तक ले जाने के लिए समग्र प्रयास निरंतर जारी है।

सभी परिषदीय विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो साथ ही बच्चों का बौद्धिक और शारीरिक विकास हो। बच्चों में स्कूल जाने के प्रति अभिरुचि बढे।

इसके लिए सरोजनीनगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत सभी 193 स्कूलों में CSR के माध्यम से भिन्न – भिन्न 5 प्रकार के – स्लाइडर, सी सॉ, मंकी हर, मैरी गो राउंड, स्विंग आदि झूले लगाए जा रहे हैं, जिसका लाभ करीब 22000 बच्चों को मिलेगा।

सतत प्रयासों से संकल्पों की पूर्ती की ओर बढ़ते हुए अब तक सरोजनीनगर के 55 से अधिक विद्यालयों में झूले भी लगवाए जा चुके हैं।

झूले लगाए जाने से बच्चों में स्कूल जाने की अभिरुचि बढ़ने के साथ-साथ उनका बौद्धिक और शारीरिक विकास भी बेहतर ढंग से हो रहा है।

सरोजनीनगर के इन स्कूलों में झूले लगने से 8000 से अधिक बच्चों के चेहरों पर मुस्कराहट आई है। बाकी स्कूलों में झूले लगाए जाने हेतु कार्य निरंतर प्रगति पर है।

दिनांक: 12 दिसंबर 2022 को प्राथमिक विद्यालय अलीनगर खुर्द, बिजनौर में क्षेत्र के 55 स्कूलों में लगाए गए 5-5 झूलों का विशाल अनावरण कार्यक्रम: भी आयोजित किया गया।

डॉ राजेश्वर सिंह

Diwali Celebration at White House

The festivities were taken to a whole new level this Diwali as the White House, at the behest of the President and the First lady, hosted the largest Diwali celebration till date, ever since the establishment began to celebrate the festival of lights under the Bush administration.

Morover, just across the Atlantic, India shines brighter still this year, as Rishi Sunak stands to form the government as the Prime minister of the United Kingdom, en route to becoming the first person of colour, the first Asian, but most importantly, the first Indian in history to hold the position.

Additionally, Dr. S. Jaishankar, our esteemed Minister of External Affairs, made a fortifying statement which has reassured the UN as well as the global population, that India always has, and always will strive to move forward and tackle all national and global issues that fall in it’s path, by progressive dialogue and diplomacy, reminding the world of her paramount importance on the surface of the globe. This only serves to prove that we as Indians, are more than capable of taking our lights of knowledge, wisdom and good will, across the divisions of national borders and oceans alike.

Dr. Rajeshwar singh

SHARE THIS ARTICLE

आत्मनिर्भर भारत की पहचान है विशाल, विराट, विहंगम ,विशिष्ट और विशेष- “विक्रांत”

आज वैश्विक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। सिर्फ जमीन ही नहीं समंदर से लेकर अंतरिक्ष तक और रियल वर्ल्ड से लेकर वर्चुअल वर्ल्ड तक वर्चस्व की लड़ाई जारी है, वर्तमान युद्ध के तौर तरीके भी बदल चुके हैं, ऐसे में शांति के अग्रदूत भारत को वैश्विक स्तर पर स्वयं को शक्तिशाली देशों के बीच अपने सिद्धांतों की रक्षा और वैश्विक शांति की स्थापना के लिए आगे आना पड़ रहा है । भारत अब अमेरिका और रूस के साथ रक्षा सौंदों में मिलने वाले हथियारों पर ही निर्भर नहीं रह गया है। अपना पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत बनाकर भारत ने महाशक्ति होने का दंभ भरने वाले देशों को अपनी ताकत और दक्षता का परिचय दे दिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आज विश्व को 130 करोड़ भारतीयों की शक्ति का अहसास कराया है। उन्होंने कहा भी है बूंद-बूंद जल से जैसे विराट समंदर बन जाता है। वैसे ही भारत का एक-.एक नागरिक वोकल फॉर लोकल के मंत्र पर जीवन जीना प्रारंभ कर देगा तो देश को पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनने में अधिक समय नहीं लगेगा।

आजादी के इस अमृत काल में प्रधानमंत्री मोदी जी का सपना स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत- 2022 के रूप में सच होकर सामने आया है। भारत का यह स्वदेशी प्रयास विश्व में शक्ति संतुलन की ओर महत्वपूर्ण कदम है। आजादी के समय ब्रिटेन में अपने यहां इस्तेमाल हो चुके एयरक्राफ्ट कैरियर को भारत को देकर अहसान जताया था। इसके बाद रूस हो या अमेरिका उन्होने पुरानी रक्षा प्रणाली बेचकर भारत को सेकंड हेंड हथियारों की बिक्री का बाजार बना दिया था। आजादी के 75वें साल में भारत आत्मनिर्भर बनने के साथ ही दुनियां भर में एक रक्षा निर्यातक के रूप में उभर रहा है ।

चीन और पाकिस्‍तान से टक्‍कर लेने के लिए अपने दूसरे एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत की लांचिंग यह सही समय है। अब भारत हिन्द महासागर से लेकर हिन्द- प्रशांत क्षेत्र तक अपनी सुरक्षा चिंताओं को दूर कर सकता है। परमाणु पण्डुब्बियों से निपटने के लिए भी विक्रांत बड़ी भूमिका निभा सकता है, चीन फुजियान विमानवाहक पोत से बड़ी संख्या में लड़ाकू विमानों को ऑपरेट कर सकता है। फुजियान में चीन ने अत्याधुनिक रडार भी लगाए हैं, जो 500 किलोमीटर की दूरी तक के क्षेत्र को स्कैन कर सकते हैं। फुजियान विमानवाहक पोत पर चीन कई तरह के विमानों को तैनात करने की योजना बना रहा है। ऐसे में विक्रांत 2022 चीन के नापाक इरादों पर लगाम लगा सकता है।

भारतीय नौसेना और रक्षा अनुसंधान एवं विकास (DRDO) द्वारा अनुसन्धान किया गया व कोचीन शिप यार्ड द्वारा निर्मित स्वदेशी आईएनएस विक्रांत में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAIL) द्वारा उत्पादित स्टील का उपयोग किया गया है जिसमें 23 हजार टन स्टील का प्रयोग किया गया है, इसके निर्माण में 2500 किलोमीटर इलेक्ट्रिक केबल, 150 किमी के बराबर पाइप और 2000 देशी वॉल्व का प्रयोग किया गया है।

आईएनएस विक्रांत में एयर कंडीशनिंग, रेफ्रिजरेशन प्लांट्स और स्टेयरिंग से जुड़े सभी कलपुर्जे स्वदेशी हैं। भारत इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BEL), भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL), किर्लोस्कर, एलएंडटी (L&T), केल्ट्रॉन, जीआरएसई, वार्टसिला इंडिया इसके निर्माण में शामिल रही हैं। इस युद्धपोत को बनाने में 50 भारतीय उत्पादक शामिल रहे हैं और हर दिन 2000 भारतीयों को सीधे तौर पर रोजगार मिला करीब 40,000 परोक्ष तरीके से इस प्रोजेक्ट से जुड़े, निर्माण में करीब 23 हजार करोड़ रुपये की लागत आयी जिसका 80-85 फीसदी रुपया भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रयोग हुआ है।

आईएनएस विक्रांत के जलावतरण के अवसर पर प्रधानमंत्री जी ने खुद कहा है कि हिन्द महासागर में सुरक्षा चिंताओं को लंबे समय तक नजरंदाज किया जाता रहा। लेकिन आज ये क्षेत्र हमारे लिए देश की बड़ी रक्षा प्राथमिकता है। हम नौसेना के लिए बजट बढ़ाने से लेकर उसकी क्षमता बढ़ाने तक, हर दिशा में काम कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री न सिर्फ विकास कि बात करते हैं बल्कि स्वदेशी प्रतीकों के जरिये राष्ट्रीय गौरव का भी अहसास कराते हैं इसलिए उन्होने आज नौसेना का नया ध्वज समंदर और आसमान को समर्पित किया।

समूचे देश को गौरवान्वित करते हुए प्रधानमंत्री जी ने ट्वीट किया कि “विक्रांत विशाल है, विराट है, विहंगम है। विक्रांत विशिष्ट है, विक्रांत विशेष भी है। ये 21वीं सदी के भारत के परिश्रम, प्रतिभा, प्रभाव और प्रतिबद्धता का प्रमाण है। उन्होंने कहा- विक्रांत आत्मनिर्भर होते भारत का अद्वितीय प्रतिबिंब है।” निश्चित रूप से मोदी जी का ये विजन हर देशवासी को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरणा देता है। उत्तर प्रदेश में तैयार होने वाला डिफेंस कॉरीडोर भी इसी परिकल्पना को साकार करने वाला है। खास बात यह है कि प्रदेश की योगी आदित्यनाथ जी की सरकार इस दिशा में उम्मीद से बढ़कर काम कर रही है।

देश के गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं कि प्रधानमंत्री जी देश की सेनाओं को विश्व में सबसे अग्रणी व आधुनिक बनाने के हर संभव प्रयास कर रहे हैं। इसी कड़ी में आज नए भारत के बुलंद हौसलों को उड़ान देता स्वदेशी सामर्थ्य व प्रतिबद्धता का प्रतीक आईएनएस विक्रांत नरेन्द्र मोदी जी द्वारा देश को समर्पित किया गया है।

नौसेना के अनुसार पूरे प्रोजेक्ट का 76% हिस्सा देश में मौजूद संसाधनों से बना है। जिससे पता चलता है कि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में मजबूत कदम उठा लिए हैं। आने वाला दशक नए भारत का ही होने वाला है।

डॉ राजेश्वर सिंह

‘Illegal and unacceptable’: India slams China, Pak over move to involve third countries in CPEC projects

Sounds like new India. CPEC Illegal and audacious, says India. Warns china/pak over move to involve third countries in economic corridor passing through PoK.

China must know this is New India. It will not allow illegal CPEC a safe passage. Move to involve third countries in completing it’s economic corridor passing through PoK is illegitimate, unacceptable, rightly says India.

Under Modi ji’s New powerful India will not keep quite and will take whatever possible step needed to keep its borders safe and contain expansionism of China.

China, Pak must mend its ways, Over smartness with New India could come with consequences.

Dr Rajeshwar Singh

URL: https://indianexpress.com/article/india/illegal-and-unacceptable-india-slams-china-pak-over-move-to-involve-third-countries-in-cpec-projects/

5G spectrum sales net record Rs 1.45 lakh crore on Day 1

This should be made a case study on how to indulge in an auction of public resources and circulated in civil services training academies & other management institutes.

This transparency, accountability and integrity in this process has been possible only because of the committed leadership of our dynamic Prime Minister Narendra modi Ji, who has dedicated himself to the mission of #TransformingIndia & #sabkasaathsabkavikas

Dr Rajeshwar Singh

URL: https://timesofindia.indiatimes.com/business/india-business/5g-spectrum-sales-net-record-rs-1-45-lakh-crore-on-day-1/articleshow/93146626.cms

SC Affirms ED’s powers to arrest and powers to summon under PMLA

In a landmark judgement today, the Hon SC, has upheld the powers of the ED under the PMLA. The law will now continue to pursue justice and ensure that the corrupt are jailed and the illegally acquired properties continue to be attached under the PMLA.

The Apex Court has further held that ED can carry out investigations under the PMLA even without an FIR in the predicate offence.
This has conclusively established that the offence of money laundering under the PMLA is a standalone offence and is independent of the proceedings under the scheduled offences (under different laws).

The Apex Court has also held that the officers of the ED are not police officials under CRPC and hence the statements recorded by ED officials under the PMLA are admissible as evidence in the court of law. The strict bail conditions will continue to hound the corrupt and make the administration of justice more significant.

Dr. Rajeshwar Singh

हर मर्ज की दवा चाय

21 मई को विश्व भर में #InternationalTeaDay मनाया जाता है। यानी अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस। वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के माध्यम से आधिकारिक तौर पर इंटरनेशनल टी डे मनाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ में रखा गया, जिसको 21 दिसंबर 2019 को मान्यता दी गयी और 21 मई को अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस घोषित कर दिया गया। 21 मई 2020 में दुनिया ने पहली बार इंटरनेशनल टी डे मनाया। अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस विश्व भर में चाय के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। चाय दिवस हर साल एक थीम के साथ मनाया जाता है। पिछले साल जहां इसकी थीम थी- ‘चाय और निष्पक्ष व्यापार वहीं इस वर्ष की थीम है ‘Celebrating Tea Around The World’ यानी ‘दुनिया भर में चाय का जश्न मनाना’ –

चाय की चुस्की के दीवाने तो हर वक्त बस एक कप चाय के लिए मौका ढूंढते हैं। तबीयत नासाज है तो चाय, सर्दी है तो चाय, गर्मी है तो चाय, बारिश हो रही है तो चाय, दोस्तों के साथ हैं तो चाय, ऑफिस में हैं तो चाय… यानि हर मर्ज की दवा बस एक प्याली चाय। कभी देश के यशस्वी प्रधानमंत्री मुंबई की रैली में 10 हज़ार चाय वालों को आने का न्योता भेजते हैं तो कभी विपक्ष को चाय की टेबल पर आमंत्रित करके जीएसटी जैसे गंभीर मुद्दों पर विस्तृत चर्चा करते हैं। चाय की टेबल पर बड़ी-बड़ी चर्चाएं अपने मकसद पर पहुँचती हैं। चाय ने सरकारें बनायी हैं तो चाय ने सरकारें गिराई भी हैं। यानी चाय की महिमा अपरंपार है।

पूरे विश्व में लोगों के दिन की शुरुआत एक कप गरमा-गरम चाय से होती है। दिन की शुरुआत एक अच्छी चाय से हो जाए तो ऐसी ऊर्जा मिलती है कि पूरा दिन बढ़िया हो जाता हैं। चाय दिलों को करीब लाती है। परिवार के साथ सुबह की चाय प्रेम को बढ़ाती हैं और तनाव को दूर करती है, वहीं दोस्तों के साथ एक प्याली चाय दोस्ती के धागों को मजबूत करती है। ऑफिस में वही चाय काम और बिज़नेस को फायदा पहुँचाती है। चाय पर ही बड़ी-बड़ी बिज़नेस मीटिंग्स सफल होती हैं। बड़ी-बड़ी डील्स होती हैं। बड़े-बड़े बिज़नेस प्रोजेक्ट चाय पर अप्रूव हो जाते हैं।

एक रिपोर्ट की मानें तो पूरी दुनिया में पानी के बाद जो दूसरी सबसे ज्यादा पी जाने वाली चीज़ है वह चाय ही है। पूरी दुनिया में कॉफ़ी से कहीं ज़्यादा चाय को लोग पसंद करते हैं। चाय की एक प्याली ठेले पर जहाँ मात्र 5 रुपये की मिल जाती है वहीं दुनिया की सबसे महंगी चाय का नाम है ‘दाहोंग पाओ’, इस चाय की कीमत होती है करीब 8 करोड़ रुपये। इस चाय की पत्तियां चीन के फुजीयान में वुई पर्वतों से लाई जाती हैं। चाय की यह किस्म बेहद दुर्लभ है। दुनिया भर में तमाम चाय के ब्रांड्स है, लेकिन सबसे ज्यादा बिकने वाला चाय का ब्रांड है- लिप्टन टी, जो दुनिया का बेस्ट सेलिंग ब्रांड है। लिप्टन की बोतलबंद चाय दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में उपलब्ध है।

भारत में जब 1835 में चाय पीने की शुरुआत हुई तब इसे सर्दी के मौसम में दवाई की तरह पिया जाता था, कुछ आयुर्वेदिक डॉक्टर नज़ला-जुकाम जैसे रोगों में यह अपनी मरीजों को पिलाते थे। भारत के कुछ आदिवासी क्षेत्रों में लोग इसका घोल बना कर भी पीते थे। धीरे धीरे चाय लोगों की जुबान को इतनी स्वादिष्ट लगी कि रोज़ पीने की परम्परा बन गयी। अफगानिस्तान और ईरान का तो यह राष्ट्रीय पेय है, वहीं तुर्की में एक आम आदमी दिन की 10 कप चाय पी जाता है। इंग्लैण्ड में तो हर दिन करीब 16 करोड़ कप चाय लोग पी जाते हैं यानी साल में 60 अरब कप चाय की खपत वहाँ होती है। भारत में तो लोग चाय के ऐसे दीवाने हैं कि हर गली, नुक्कड़, चौराहे, बाजार, हाट में चाय के ठेले दिखते हैं। चाय के बिना दोस्ती-यारी फीकी-फीकी रहती है। चाय की प्याली के बिना भारत के दफ्तरों में कामकाज ही नहीं शुरू होता है। भारत में ही नहीं बल्कि अनेकानेक देशों अपने परिचितों को, दोस्तों को, सम्मानित जनों को चाय पर घर बुलाने का चलन है जो लोगों को गौरवान्वित करता है। उन्हें एक दूसरे के समीप लाता है। चाय से सम्बन्ध बनते हैं, दोस्तियां होती हैं, बड़ी-बड़ी बिज़नेस मीटिंग्स सफल होती हैं।

माना जाता है कि चाय पीने की शुरुआत चीन से हुई। चीन के एक राजा शैन नुंग के हाथों गर्म पानी की प्याली में गलती से चाय की कुछ पत्तियां गिर गयीं, इससे पानी का रंग बदल गया। राजा ने जब उसको सिप किया तो पाया कि वह पानी बहुत स्वादिष्ट है। तब से राजा गर्म पानी में चाय की पत्तियां डाल कर पीने लगा और देखते ही देखते चीन में चाय का स्वाद लोगों की जुबान पर चढ़ गया।

आज चाय उत्पादन के क्षेत्र में चीन का स्थान नंबर एक पर है, वहां हर साल करीब 25 लाख टन चाय का उत्पादन होता है। उसके बाद भारत में सबसे ज़्यादा चाय की खेती होती है। अन्य प्रमुख उत्पादक देशों में श्रीलंका एवं कीनिया इसके बाद महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भारत में प्रतिवर्ष क़रीब 13 लाख टन चाय पैदा होती है। भारत सबसे बड़ा चाय का उपभोक्ता भी है, यानी यहां सबसे ज़्यादा चाय पी जाती है तो चीन के बाद वह दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक भी है। भारत का चाय उद्योग आज कई वैश्विक चाय ब्रांडों का मालिक है।

दुनिया भर में चाय की 1500 से ज़्यादा किस्में हैं और दुनिया भर में 20 हजार से ज्यादा तरीकों की चाय तैयार की जाती है जिनमे मुख्यतः ब्लैक टी, ग्रीन टी, ऑरेंज टी, येलो और वाइट टी काफी प्रचलित हैं। कश्मीर की गुलाबी चाय भी खूब प्रसिद्ध है। पुराने लखनऊ के कुछ नवाबी घरानों में गुलाबी चाय पीने का रिवाज है, जिसका जायका एक बार जुबान पर चढ़ जाए तो फिर नहीं उतरता। मगर दुनिया भर में काली चाय का प्रयोग सबसे ज़्यादा होता है। 75% लोग काली चाय ही पसंद करते हैं जिसमें चीनी और दूध का प्रयोग इसके स्वाद को बढ़ाने के लिए किया जाता है। जब से जैविक खेती का प्रचलन बढ़ा है जैविक चाय के उत्पादन में भी काफी बढ़ोतरी देखी गयी है। 75% जैविक चाय का प्रयोग फ्रांस, जर्मनी, जापान, अमेरिका एवं ब्रिटेन द्वारा होता है।

भारत में तो काली चाय के साथ खूब प्रयोग हुए हैं। अदरक वाली चाय, तुलसी वाली चाय, सौंफ-इलायची वाली चाय, लौंग-दालचीनी चाय और अब तो कुछ हर्ब भी चाय के साथ इस्तेमाल होने लगे हैं। आइस टी का चलन भी बढ़ रहा है। चाय की दीवानगी के चलते दुनिया भर में टी बैग का कारोबार बहुत तेज़ी से बढ़ा है। ब्लैक टी की सबसे ज़्यादा खपत भारत में होती है। अमेरिका में 80% चाय की खपत आइस टी के फॉर्म में होती हैं।

चाय के बारे में एक बेहद रोचक तथ्य यह है कि अगर इसकी पत्तियां गर्म पानी में डाल कर घर में रख दें और इसकी सुगंध को उड़ने दें तो यह प्राकृतिक ‘ऑलआउट’ का काम करती है और मच्छरों को भगा देती है। इसके अलावा चाय में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो उम्र बढ़ने की रफ़्तार को कम करते हैं। मोटे लोगों के लिए तो चाय वरदान है क्योंकि इसको पीने से भूख कम लगती है और मोटापे पर विराम लगता है। ऑस्ट्रेलिया में हुए एक शोध की मानें तो चाय में एक पदार्थ केचेटीन पाया जाता है जो हड्डियों को मजबूती देता है। चाय में एल-थेनाइन नाम का पदार्थ पाया जाता है जो ब्रेन पावर को बढ़ाने और स्ट्रेस यानी तनाव को कम करने में मदद करता है।

भारत में चाय का उत्पादन मुख्य रूप से असम में होता है और ये वहाँ का राजकीय पेय भी है। भारत में चाय की खेती 1837 में अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई। दरअसल असम में स्थानीय क़बाइली लोग चाय की पत्तियों का घोल बनाकर पीते थे। असम के इलाक़े चाय की झाड़ियाँ पायी जाती थीं। तब पहली बार अंग्रेज सरकार ने बड़े स्तर पर असम में चाय उत्पादन शुरू किया। इससे पहले 1834 में गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक द्वारा भारत में चाय उत्पादन को लेकर एक समिति का गठन किया गया था। असम के चबुआ में भारत का पहला चाय बागान स्थापित किया गया। 1850 के दशक में, भारतीय चाय उद्योग का तेजी से विस्तार हुआ। 50-60 वर्षों में असम दुनिया का अग्रणी चाय उत्पादक क्षेत्र बन गया। आज असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, सिक्किम, नागालैंड, उत्तराखंड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, बिहार, उड़ीसा भारत के प्रमुख चाय उत्पादक राज्य हैं। देश के करोड़ों किसानों और श्रमिकों की रोजीरोटी चाय पर निर्भर है। देश के लगभग 565 हज़ार हेक्टेयर भूमि पर चाय के बागान हैं और हम अपने उत्पादन का 16% निर्यात करते हैं। आने वाले समय में चाय के व्यापार में काफी उछाल आने की संभावना है। हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका जो कि चाय उत्पादन और निर्यात के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था, के हालात काफी खराब हैं। इसको देखते हुए भारत की चाय की मांग बढ़नी शुरू हो गयी है। आने वाले समय में ये व्यापार बड़ी ऊंचाईयां छुएगा, इसकी पूरी उम्मीद है।

डॉ राजेश्वर सिंह