“लोकमाता अहिल्याबाई होलकर: मातृत्व, मर्यादा और मानवीय गरिमा की अमर प्रतीक” मेरे विचारों में … डॉ. राजेश्वर सिंह
भारत के आदर्शों में “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” केवल एक श्लोक नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता की वह शाश्वत चेतना है, जो हर युग में हमारे विचारों और कार्यों का आधार बनी है। जब प्रभु श्रीराम ने लक्ष्मण से यह कहा था कि मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है, तब उन्होंने केवल भूगोल का नहीं, संस्कृति के कलेवर में लिपटी चेतना का आदर किया था।
आज जब मैं भारत की मातृशक्ति को देखता हूँ तो उसमें केवल वात्सल्य नहीं, विराटता का वैभव भी दिखाई देता है। वह शक्ति, जिसमें मां दुर्गा का संहार है, लोपामुद्रा का ब्रह्मज्ञान है, सीता की मर्यादा है, शबरी की भक्ति है और मां यशोदा का अथाह प्रेम भी है। भारत की स्त्री में करुणा के साथ-साथ क्रांति की भी क्षमता है।
भारतीय नारी द्वारा जन शक्ति की साधना – इतिहास को मिली दिशा :
इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब भारत पर संकट आया, तब-तब स्त्रियों ने केवल घर नहीं, धर्म और राष्ट्र की सीमाएं भी संभालीं।
अहिल्याबाई होलकर: जिन्होंने सिंहासन को राजनीति का नहीं, धर्म का मंच बनाया।
राजमाता जीजाबाई: जिन्होंने बालक शिवाजी में स्वराज्य का संकल्प बोया।
रानी दुर्गावती: जिन्होंने तलवार नहीं, आत्मबल से युद्ध किया और जीवन देकर भी आत्मगौरव नहीं खोया।
रानी अवंतिबाई: जिन्होंने घोषणा की कि “रानी मर सकती है पर गुलाम नहीं बन सकती।”
रानी लक्ष्मीबाई: जिन्होंने “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी” कहकर एक क्रांति को जन्म दिया।
इन वीरांगनाओं की परंपरा में लोकमाता अहिल्याबाई का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
विपत्तियों में तप, शोक में शक्ति का आह्वान
लोकमाता अहिल्याबाई का जीवन उदाहरण है कि उन्होंने निजी शोक को भी लोक कल्याण का माध्यम बना दिया, 8 वर्ष की आयु में विवाह, 21 वर्ष की अवस्था में पति का निधन, 35 वर्ष में एकमात्र पुत्र का असामयिक वियोग, इन सभी घटनाओं ने उन्हें तोड़ा नहीं, बल्कि मजबूत किया। उन्होंने न केवल अपने निजी दुःख को धैर्य में ढाला, बल्कि उसे जनसेवा और नीति के मार्ग में लगा दिया।
सती प्रथा का विरोध कर उन्होंने सामाजिक सुधार की मशाल जलाई, और विधवा पुनर्विवाह के समर्थन से रूढ़ियों को चुनौती दी। वे केवल एक रानी नहीं थीं, वे समाज की दिशा बदलने वाली नेतृत्वकर्ता थीं।
नीति, शासन और न्याय की त्रिवेणी
जब उन्हें सत्ता मिली, उन्होंने युद्ध नहीं किए बल्कि उन्होंने संवाद और नीति से राज्य का संचालन किया।
जब राघोबा पेशवा ने इंदौर पर सैन्य आक्रमण की योजना बनाई, अहिल्याबाई ने केवल एक पत्र लिखकर युद्ध को रोका और उसी शत्रु से अपने राज्य की रक्षा का वचन लिया। यह उनकी कूटनीति नहीं, उनकी राजधर्म में आस्था का परिचायक था।
उनका प्रशासन इतना न्यायपूर्ण था कि उन्होंने अपने पति को भी नियम से ऊपर नहीं माना। एक बार खंडेराव ने अग्रिम वेतन की मांग की, तो अहिल्याबाई ने विनम्रता से कहा, “यदि आप नियम नहीं मानेंगे, तो प्रजा का अनुसरण कैसे करेगी?”
रामराज्य का मूर्त रूप
अहिल्याबाई ने शासन को व्यक्तिगत लाभ नहीं, धर्म और लोककल्याण का माध्यम बनाया। 1767 से 1795 तक पूरे 28 वर्षों तक उन्होंने मालवा की भूमि को न केवल समृद्ध किया, बल्कि संस्कृति और न्याय का केंद्र बना दिया। उन्होंने हर शासकीय आदेश-पत्र पर “श्री शंकर” अंकित कर अपने शासन को भगवान शिव को समर्पित किया। यह एक धार्मिक भावना नहीं, एक आध्यात्मिक प्रशासनिक दर्शन था।
भारत के धार्मिक पुनर्जागरण की महानायिका
लोकमाता अहिल्याबाई का योगदान केवल इंदौर या मालवा तक सीमित नहीं था। उन्होंने भारत भर के 8527 मंदिरों और तीर्थस्थलों का पुनर्निर्माण करवाया।
उत्तर में केदारनाथ, बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पश्चिम में सोमनाथ, पूर्व में गया और जगन्नाथपुरी और मध्य में अयोध्या, काशी, मथुरा, इन सभी स्थानों को फिर से संस्कृति के जीवनसूत्र से जोड़ा। उनका यह कार्य आस्था की नहीं, राष्ट्रीय आत्मा की पुनर्स्थापना थी।
वर्तमान में अहिल्या: विचार और दिशा
आज जब भारत एक बार फिर धार्मिक पुनर्जागरण, सांस्कृतिक चेतना और स्त्री सशक्तिकरण की ओर बढ़ रहा है, तब अहिल्याबाई जैसी विभूतियां प्रेरणा की लौ बनकर हमारा पथ आलोकित करती हैं।
आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत ने स्त्रियों को सम्मान ही नहीं, सशक्त मंच दिया है: नारी वंदन अधिनियम से राजनैतिक भागीदारी का सशक्त मार्ग प्रशस्त किया गया। तीन तलाक जैसी अमानवीय परंपरा को समाप्त कर न्याय का मार्ग खोला गया। पहली बार भारत की रक्षा और वित्त मंत्रालय जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां महिलाओं को सौंपी गईं। और जब हमारी बेटियों के सिन्दूर पर आतंकियों ने हमला किया, तो भारत ने ऑपरेशन सिन्दूर चलाकर अपने साहस से दुनिया को संदेश दिया।
उत्तर प्रदेश में नारीशक्ति का संगठित उत्थान
उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री आदरणीय योगी आदित्यनाथ जी ने नारी सुरक्षा और सशक्तिकरण को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है: प्रदेश पुलिस बल में 30,000 से अधिक बेटियों की भर्ती, तीन महिला PAC बटालियन का गठन, हर जिले में नारी सेवा केंद्रों की स्थापना, यह केवल योजनाएं नहीं, समाज में परिवर्तन की लहर है।
सरोजनीनगर में मातृशक्ति का आत्मनिर्भर निर्माण
मेरे विधानसभा क्षेत्र सरोजनीनगर में भी हम इसी भावना को साकार कर रहे हैं: 150 से अधिक तारा शक्ति केंद्रों की स्थापना – 2000 से अधिक सिलाई मशीनों का वितरण, मातृशक्ति द्वारा अब तक 35 ,000 इको-फ्रेंडली बैग और 25,000 पार्टी के झंडे इन केंद्रों पर बनाए जा चुके हैं, मेरा लक्ष्य है कि 2027 तक 5 लाख झंडों का निर्माण इन केंद्रों द्वारा हो यह केवल उत्पादन नहीं, स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की यात्रा है।
अहिल्याबाई से आज का प्रण
आज लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के जीवन से प्रेरणा लेकर हमें एक संकल्प लेना चाहिए हम धर्म और संस्कृति की रक्षा करेंगे, हम नारी गरिमा और सुरक्षा को सर्वोपरि मानेंगे, और हम राष्ट्र प्रथम की भावना को जीवन का ध्येय बनाएंगे
लोकमाता अहिल्याबाई होलकर अमर रहें!
भारत माता की जय!
जय हिंद!!
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